"હિન્દુસ્તાન જેવો કોઈ દેશ નહીં અને પત્રકારત્વ જેવો કોઈ વ્યવસાય નહીં." - કાંતિ ભટ્ટ
Friday, December 16, 2022
અહિંસાની વ્યાખ્યા
ગાંધીજીના હદયને ગોડસેની ગોળીઓએ ...
Thursday, December 15, 2022
Tuesday, December 13, 2022
મેરે પ્રિય આત્મન
Mere Priy Atman (मेरे प्रिय आत्मन)
...मैंने भी कुछ बीज बोये थे और फिर उनमें अंकुर आए और अब फूल लग गए है। उन फूलों की सुगंध से मेरा जीवन भर गया है। उस सुगंध के कारण अब मैं किसी और ही लोक में हूं। उस सुगंध ने मुझे नया जन्म दिया है और अब जो मैं साधारण आंखों से दिखाई पड़ता हूं, वहीं नहीं हूं। ...कुछ क्रांतिबीज हवाएं मुझसे लिए जा रही हैं। मुझे कुछ ज्ञात नहीं कि वे किन खेतों में पहुंचेंगे और कौन उन्हें संभालेगा। मैं तो इतना ही जानता हूं, उनसे ही मुझे जीवन के, अमृत के और प्रभु के फूल उपलब्ध हुए हैं और जिस खेत में भी वें पड़ेंगे, वहीं की मिट्टी अमृत के फूलों में परिणत हो जाएगी। - ओशो (क्रांतिबीज)
... सत्य निरंजन ऐसे ही निष्ठावान हैं। उनकी श्रद्धा मुझमें गहरी है। उनका लगाव गहरा है। चुपचाप छाया की तरह यहां वे मेरे काम में लगे रहते हैं। जो लोग पूना में मेरे बहुत निकट आये हैं, उनमें से निरंजन एक हैं। ओशो (मैंने रामरतन धन पायो) ये संस्मरण बहुमूल्य है क्योंकि ये और कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं सिवाय बागमार जी की स्मृतियों के। कहते हैं, ‘ईश्वरस्य निःश्वसितः वेदाः’। ईश्वर ने श्वास छोड़ी और वेद जन्मे। महापुरुषों के बाबत यही सच है, वे सहजता से जो कहते हैं वही ज्ञान बन जाता है। वे ओशो के वचन भी ईश्वर के निःश्वास ही हैं। सहज ही बातचीत में, आते जाते, ओशो के मुंह से झरे हुए मोती हैं जो बहुत जतन से संजोये गए हैं। बागमार जी ने इन मोतियों को बिखरने नहीं दिया वरन् अपनी स्मृति मंजूषा में संभाल कर रखा। तीक्ष्ण स्मृति का वरदान मिला है उन्हें। जो भी सुनते हैं उसे शब्दशः प्रस्तुत कर सकते हैं। इसके कई उदाहरण आप इस किताब में पाएंगे। उनकी असाधारण स्मृति आज हम सबके लिए सौभाग्य बनी है।
author
Sw Satya Niranjan (P.C.Bagmar)